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गंगा दशहरा (Dashhara Mantra) दशहरा श्लोक/मंत्र

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गंगा दशहरा, पहाड़ों में इसे दसार या दसौर भी कहते हैं | कुमाऊं क्षेत्र के हिस्सों में इस दिन घरों के मुख्य दरवाजों के ऊपर और मंदिरों में गंगा दशहरा पत्र लगाया जाता है. कुमाऊं क्षेत्र में गंगा दशहरा मनाने की काफी पुरानी रीत है. गंगा दशहरा पत्र पुरोहितों द्वारा अपने यजमानों को घर-घर दिए जाने की परम्परा है. इन दशहरा पत्रों के बदले पुरोहितों को यजमान दक्षिणा में चावल इत्यादि देते हैं. पहाड़ों में यह माना जाता है कि इस पत्र के कारण प्राकृतिक आपदाओं और आसमान से गिरने वाली बिजली से घर की सुरक्षा होती है. गंगा दशहरा पर्व प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्त पक्ष की दशमी को मनाया जाता है. गंगा दशहरा की उत्तराखण्ड के पारम्परिक पर्वों में गणना नहीं होती यह माना जा सकता है कि यह उत्तराखण्ड में आकर बसने वाले पुरोहित वर्ग की देन है Dashhara Mantra ( दशहरा श्लोक/मंत्र) अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च। जैमिनिश्च सुमन्तुश्च पञ्चैते वज्र वारका:।।1।। मुने कल्याण मित्रस्य जैमिनेश्चानु कीर्तनात। विद्युदग्निभयंनास्ति लिखिते च गृहोदरे।।2।। यत्रानुपायी भगवान् हृदयास्ते हरिरीश्वर:। भंगो भवति वज्रस्य तत्र शूलस